नमस्कार दोस्तों ! ऑनलाइन जॉब अलर्ट के फुल फॉर्म और हिंदी मीनिंग केटेगरी में आपका स्वागत है | आज की पोस्ट में हम आपको उर्दू (Urdu) जबान का मतलब बताएंगे उर्दू का मतलब है लश्कर यानि वो लश्कर जो भारत आया और यही रूक गया था।वह एक काफिला था। उस काफिले में बहुत लोग शामिल थे । जिन लोगों की ज़बाने अलग-अलग थी।एक दूसरे की ज़बान को समझना मुश्किल था उन ज़बानो को जोड़ कर एक ज़बान बनाई गई थी क्योंकि इसे लोग आसानी से समझ सकते थे। इसी कारण उर्दू का मतलब एक लश्कर है। हिन्दुस्तान के लोग भी इसमें शामिल हुए तब वह लोग भी बहुत ज्यादा ज़बाने समझ नहीं पाते थे सभी को समझने परेशानी होती थी। इस प्रकार कई जबानों से मिलकर उर्दू बनी है । जैसे पंजाबी , संस्कृत ,फारसी , अरबी , तुर्की , सिंधी आदि |
उर्दू की इब्तिदाई से मुतालिक अवालीन नजरिया
उर्दू के मुतालिक एहम नज़रियात जिन माहेरिन ने उर्दू की इब्तिदाई से मुतालिक नज़रयात पेश किए उनमें डॉ माहेदीन कादरी मसूदा हसन खां डॉक्टर शौकत का जिक्र है । यह सभी लोग उर्दू के आगाज़ के मसले को खड़ी बोली के आगाज़ का मसला मानते हैं उर्दू जबान के ख़त वह खाल 12 वीं सदी के आखिर में शुरू हुए। उर्दू हिंदुस्तानी का बड़ा विरसा है और यह अराइज़ जबान हैं । जिसकी साख हिंदुस्तानी है । इसमें यूं तो ईरानी ,अरबी, अंग्रेजी, और फारसी ज़बानो के असरात भी है।उर्दू की इपतदा से मुतालिक मोहम्मद हुसैन आजाद ने पेश किया उनका यह कौल बहुत मशहूर है। कि उर्दू ब्रजभाषा से ली गई है।कुछ लोगों का नजरिया है कि यह पंजाबी भाषा से ली गई। उर्दू का सिलसिला और ताल्लुक सिंध से बताया है। उन्होंने इसका ताल्लुक सिंध से आए हुए मोहम्मद बिन कासिम की आमद से किया है। इस कारण उर्दू की इब्तिदा के नजरियता अलग अलग है।
उर्दू जबान और तालीम | Urdu Language & Education
उर्दू हमारी मीठी जबान है। यह बड़ी प्यारी और सादी जबान है। इस जबान को गंगा जमुना की तहजीब कहते है । इंटरनेशनल जबान है जो हर जगह बोलने और सुनने को मिल जाती है। इसके बोलने में बहुत शीरी है यानी यह बहुत मीठी जबान है। इसमें बहुत अदब है। और यह प्यार मोहब्बत की जबान है इसके जरिए किसी के इस जवान के जरिए किसी के दिल में आसानी से उतरा जा सकता है । इसमें मोहब्बत की शीरी भरी हुई है।
दोस्तों प्रेमचंद भी अपने नाटक ,उपन्यास उर्दू में ही लिखते थे । उनकी कहानियों में एक अरबी-फारसी का मिश्रण होता था कवि हो या साहित्यकार बहुत अच्छी उर्दू लिखते और पढ़ते थे। फिल्मी दुनिया पर भी उर्दू का बहुत ज्यादा है असर है । फिल्म इंडस्ट्री में उर्दू का इस्तेमाल बहुत ज्यादा किया जाता है। कोई सा भी गाना हो या कोई अच्छे-अच्छे डायलॉग हो या अच्छी-अच्छी फिल्में जैसे पाकीजा है मुग़ल-ए-आज़म आदि फिल्में उर्दू में ही बनाई गई है। इसमें उर्दू का बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया गया है। बड़े से बड़ा फनकार बड़े से बड़ा शायर बड़े से बड़ा गायक सभी लोग उर्दू का इस्तेमाल बहुत ज्यादा करते हैं या यूं के उर्दू के बिना कोई भी गाना अधूरा रहता है । क्योंकि गाने लिखने वाला शायरी उर्दू के अल्फाज का इस्तेमाल करता है। अगर गाने के शेर उर्दू में न हो तो शेर का मतलब समझ नहीं आता है।
लेकिन आजकल जो नया युग आया है उसमें उर्दू की हालत दिन पर दिन गिरती चली जा रही है अंग्रेजी बोलने का प्रचलन बहुत ज्यादा हो गया है और लोग तो अब हिंदी और उर्दू पढ़ना पसंद नहीं करते ना बोलना पसंद करते हैं । उन्हें अंग्रेजी बोलना अच्छा लगता है । अंग्रेजी जबान अच्छी लगती है। वेस्टर्न कल्चर के साथ वेस्टर्न भाषा को भी अपना रहे हैं। इसी वजह से आज कल तालीम के अंदर उर्दू का एक अनमोल हिस्सा है जो हमें तहजीब सिखाता है बड़ों का रिस्पेक्ट करना सिखाता है।बड़ों के लिए कैसे-कैसे अल्फाज की अदायगी करनी है । किस तरह से उनकी इज्जत करनी है । सब उर्दू तालीम के अंदर आते हैं । इसलिए उर्दू की तालीम हमारे लिए बहुत ज्यादा जरूरी है । उर्दू जबान हिंदुस्तान में दूसरे नंबर पर भी रही है हिंदी पहले नंबर पर है और उर्दू दूसरे नंबर पर आती है । हिंदुस्तान के बहुत से राज्यों में अभी भी सरकारी ऑफिसों के कार्य उर्दू में ही किए जाते हैं जैसे कश्मीर में कश्मीरी भाषा के साथ-साथ उर्दू बहुत ज्यादा बोली जाती है और लिखी भी जाती है समझी भी जाती है। यहां के लोग उर्दू का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते हैं । हिंदी और उर्दू दोनों को बहुत से शायर और कवि बहनों के रूप में मानते हैं। पर आज हम इन दोनों ही भाषाओं को पीछे छोड़ रहे हैं और इसी कारण आज इन दोनों भाषाओं का कोई वजूद नहीं रहा इसे वजूद में लाने के लिए हम लोगों को अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी उर्दू की तालीम देनी होगी।
“ सलीके से हवाओ मे जो खुशबू घोल सकतें हैं।
अभी कुछ लोग बाकी है। जो उर्दू बोल सकते है”।
दोस्तों मैं आपसे कहना चाहता हूं । कि बड़े-बड़े पंडित भी उर्दू का बहुत इस्तेमाल करते हैं आज से नहीं पुराने टाइम से ही बहुत ज्यादा अहमियत रखती थी ।क्योंकि महाराष्ट्र बिहार हैदराबाद में अभी भी उर्दू का बहुत प्रचलन है और UP में उर्दू दूसरे नंबर पर है। यहां पर एक सब्जेक्ट की तरह इस को पढ़ाया भी जाता है।
उर्दू जबान की अहमियत और जरूरत | Need of Urdu Language
तालीम के बारे में दुनिया भर के तालिम आफता लोग एक जबान है कि तालीम के लिए व जबान मौजू होती है जिसको सभी लोग आसानी से समझ सकते है।।इस मकसद के लिए हर कौम तालीम व तरबियत का ऐसा निजाम मरतब करतीं हैं कम से कम वक्त पर लोगों को अच्छी से अच्छी तालीम देकर अमल का जामा पहनाया जा सके। इस तरह कौम का जरिए तालीम भी इस कौम की तामीर वह तशकील में एक अहम भूमिका निभाती है। अतः जो कौमे अपनी ज़बान को जरिए तालीम के तौर पर नहीं अपनाते इस तरह उन के बच्चों में कौमी किरदार पैदा नहीं होता अफसोस इस बात का है कि आज का नौजवान विदेशी जबान को अपनाएं हुए है। अंग्रेजों की रंगत में रंगे हुए हैं इसलिए हम बहुत पीछे की तरफ जा रहा है । दोस्तों आज हम अपनी उर्दू जबान से बहुत पीछे हो गए हैं या यूं कहें कि हमने अपनी ज़बान जो कि उर्दू है उसको ही पीछे करा दिया है। या यूं कहे कि किसी और की जबान को अपनाना और अपनी जबान को छोड़ देना हिमाकत नहीं तो और क्या है। चाहे वह ज़बान जो हमने अपनी ज़बान को छोड़कर अपनाी ली है । वह कितनी ही शोहरत याफ्ता क्यों। ना हो।
दोस्तो आज के दौर में हम अपनी उर्दू जबान को छोड़कर अंग्रेज़ी ज़बान को अपना रहे हैं इसी कारण हर चीज में हम पीछे हो रहे हैं। आप जापान और अमेरिका चीन को ले लीजिए वे देश आज दुनिया में हर चीज में आगे निकाल चुके हैं क्योंकि वह केवल एक ही ज़बान इस्तेमाल करते हैं। जापान वाले जापानी भाषा का इस्तेमाल करते है वह अंग्रेजी का इस्तेमाल नहीं करते चीनी लोग चीन की भाषा का इस्तेमाल करते हैं वह कोई और भाषा का इस्तेमाल नहीं करते यू एस ए वाले अपनी ज़बान का इस्तेमाल करते हैं। वो किसी और भाषा का इस्तेमाल नहीं करते। तालीम में भी इसीलिए बहुत आगे हैं क्योंकि वह एक ही ज़बान इस्तेमाल करते हैं । हिंदुस्तान की आजादी के बाद हमने एक तवील अरसे तक अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी और आखिरकार हम इस लड़ाई में कामयाब भी हुए। और हम अंग्रेजों से स्वतंत्र हो गए। इस प्रकार हम अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने में भी सफल रहे। हमारा देश आखिरकार 1947 को आजाद हो गया और दो भागों में तक्सीम हो गया एक भाग पाकिस्तान और दूसरा भाग हिंदुस्तान बना।
जब देश का माहौल सही हुआ तब हमने सुई से लेकर जहां तक बना डाला इस प्रकार हमारे मुल्क में तरक्की हासिल की जब 1947 से लेकर अब तक हम लोग बहुत कुछ तरक्की कर चुके हैं।
निष्कर्ष
स्पष्ट रूप से यही निष्कर्ष निकलता है कि आज के दौर में हमें अपने बच्चों को अपनी ज़बान जो कि हमे विरसे में मिली है । उसको जरूर सिखाना चाहिए चाहे वह हिंदी है या उर्दू उर्दू जबान एक ऐसी ज़बान है जो दुनिया के हर कोने में बोली और समझी जाती है उर्दू की अहमियत को बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम बच्चों को उर्दू पढ़नी चाहिए इससे हमारे इससे
हमारे बच्चों में बोलने का सलीका आएगा बड़ों का आदर करना आएगा । हमें किस प्रकार से रहना है इन सब बातों का सलीका उर्दू जबान से ही आएगा। उर्दू सब ज़बानो को जोड़ने से बनी है। यह ज़बान एकता की मिसाल कायम करती है। यह प्यार की ज़बान है।
( उर्दू है जिसका नाम हम ही जानते हैं दाग़)
( सारे जहां में धूम हमारी ज़बान की है।)